श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 17: काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन  »  श्लोक 19-20
 
 
श्लोक  14.17.19-20 
दृश्यन्ते संत्यजन्तश्च शरीराणि द्विजर्षभ।
गर्भसंक्रमणे चापि मर्मणामतिसर्पणे॥ १९॥
तादृशीमेव लभते वेदनां मानव: पुन:।
भिन्नसंधिरथ क्लेदमद्भि: स लभते नर:॥ २०॥
 
 
अनुवाद
विप्रवर! सभी जीव अपने शरीर का परित्याग करते हुए देखे जाते हैं। मनुष्य गर्भ में प्रवेश करते समय और गर्भ से नीचे गिरते समय एक ही पीड़ा का अनुभव करता है। मृत्यु के समय जीवों के शरीर के जोड़ टूटने लगते हैं और जन्म के समय वे गर्भ के जल में भीगकर अत्यंत व्यथित हो जाते हैं। 19-20॥
 
Vipravara! All living beings are seen abandoning their bodies. A human being experiences the same pain while entering the womb and while falling down from the womb. At the time of death, the joints of the living beings' bodies start breaking and at the time of birth, they become drenched in the womb's waters and become extremely distressed. 19-20॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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