श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 17: काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  14.17.18 
वेदनाभि: परीता त् मा तद् विद्धि द्विजसत्तम।
जातीमरणसंविग्ना: सततं सर्वजन्तव:॥ १८॥
 
 
अनुवाद
द्विजश्रेष्ठ! यह अच्छी तरह जान लो कि मृत्यु के समय जीव का शरीर और मन दुःख से व्याकुल रहता है। इसी प्रकार संसार के सभी जीव जन्म-मृत्यु से सदैव व्याकुल रहते हैं। 18॥
 
Dwijshreshtha! Know this very well that at the time of death the body and mind of the living being is troubled with pain. In this way all the living beings of the world always remain troubled by birth and death. 18॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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