श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 17: काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  14.17.17 
तत: सवेदन: सद्यो जीव: प्रच्यवते क्षरात्।
शरीरं त्यजते जन्तुश्छिद्यमानेषु मर्मसु॥ १७॥
 
 
अनुवाद
जब प्राणों का क्षय होने लगता है, तब पीड़ा से पीड़ित होकर आत्मा इस जड़ शरीर को तुरंत ही त्याग देती है। वह उस शरीर को सदा के लिए त्याग देती है॥17॥
 
When the vital parts start getting torn apart, then the soul, tormented by the pain, immediately leaves this inanimate body. It leaves that body forever.॥ 17॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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