श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 17: काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  14.17.16 
अत्यर्थं बलवानूूष्मा शरीरे परिकोपित:।
भिनत्ति जीवस्थानानि मर्माणि विद्धि तत्त्वत:॥ १६॥
 
 
अनुवाद
इस शरीर में कुपित होकर जो पित्त अत्यन्त प्रबल हो जाता है, वह आत्मा के अन्तःपुरों को फाड़ डालता है। इसे ठीक से समझ लो ॥16॥
 
The bile which becomes very strong after getting angry in this body, tears apart the innermost parts of the soul. Understand this correctly. 16॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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