श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 17: काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  14.17.15 
ऊष्मा प्रकुपित: काये तीव्रवायुसमीरित:।
शरीरमनुपर्येत्य सर्वान् प्राणान् रुणद्धि वै॥ १५॥
 
 
अनुवाद
शरीर में तेज वायु के कारण पित्त बढ़ जाता है और वह शरीर में फैलकर समस्त प्राणों की गति को रोक देता है । 15॥
 
Due to strong wind in the body, bile increases and it spreads in the body and stops the movement of all the vital organs. 15॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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