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श्लोक 14.17.15  |
ऊष्मा प्रकुपित: काये तीव्रवायुसमीरित:।
शरीरमनुपर्येत्य सर्वान् प्राणान् रुणद्धि वै॥ १५॥ |
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अनुवाद |
शरीर में तेज वायु के कारण पित्त बढ़ जाता है और वह शरीर में फैलकर समस्त प्राणों की गति को रोक देता है । 15॥ |
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Due to strong wind in the body, bile increases and it spreads in the body and stops the movement of all the vital organs. 15॥ |
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