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श्लोक 14.17.13  |
स्वदोषकोपनाद् रोगं लभते मरणान्तिकम्।
अपि वोद्बन्धनादीनि परीतानि व्यवस्यति॥ १३॥ |
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अनुवाद |
जब ये दोष बढ़ जाते हैं, तब वह अपने लिए घातक रोगों को आमंत्रित करता है। अथवा वह फांसी लगाने या पानी में डूब जाने आदि शास्त्रविरुद्ध उपायों का सहारा लेता है॥13॥ |
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When these defects get aggravated, he invites fatal diseases for himself. Or he resorts to methods contrary to scriptures like hanging or drowning in water etc.॥ 13॥ |
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