श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 17: काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  14.17.13 
स्वदोषकोपनाद् रोगं लभते मरणान्तिकम्।
अपि वोद्‍बन्धनादीनि परीतानि व्यवस्यति॥ १३॥
 
 
अनुवाद
जब ये दोष बढ़ जाते हैं, तब वह अपने लिए घातक रोगों को आमंत्रित करता है। अथवा वह फांसी लगाने या पानी में डूब जाने आदि शास्त्रविरुद्ध उपायों का सहारा लेता है॥13॥
 
When these defects get aggravated, he invites fatal diseases for himself. Or he resorts to methods contrary to scriptures like hanging or drowning in water etc.॥ 13॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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