श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 16: अर्जुनका श्रीकृष्णसे गीताका विषय पूछना और श्रीकृष्णका अर्जुनसे सिद्ध, महर्षि एवं काश्यपका संवाद सुनाना  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  14.16.7 
मम कौतूहलं त्वस्ति तेष्वर्थेषु पुन: पुन:।
भवांस्तु द्वारकां गन्ता नचिरादिव माधव॥ ७॥
 
 
अनुवाद
माधव! मैं उन कथाओं को सुनने के लिए बार-बार लालायित हूँ। आप शीघ्र ही द्वारका जा रहे हैं; अतः कृपया मुझे वे सब कथाएँ पुनः सुनाएँ।'
 
‘Madhava! I am repeatedly yearning to hear those topics. You are soon going to Dwaraka; therefore, please tell me all those topics again.'
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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