श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 16: अर्जुनका श्रीकृष्णसे गीताका विषय पूछना और श्रीकृष्णका अर्जुनसे सिद्ध, महर्षि एवं काश्यपका संवाद सुनाना  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  14.16.43 
प्रीतोऽस्मि ते महाप्राज्ञ ब्रूूहि किं करवाणि ते।
यदीप्सुरुपपन्नस्त्वं तस्य कालोऽयमागत:॥ ४३॥
 
 
अनुवाद
हे मुनि! मैं आप पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ। मुझे बताइए, मुझे आपकी प्रिय वस्तु क्या करनी चाहिए? जिस वस्तु को पाने की इच्छा से आप मेरे पास आए हैं, उसे प्राप्त करने का समय आ गया है ॥ 43॥
 
O great sage! I am very pleased with you. Tell me, what is your favourite thing I should do? The time has come for you to receive the thing you have come to me with the desire to obtain. ॥ 43॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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