श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 16: अर्जुनका श्रीकृष्णसे गीताका विषय पूछना और श्रीकृष्णका अर्जुनसे सिद्ध, महर्षि एवं काश्यपका संवाद सुनाना  »  श्लोक 38
 
 
श्लोक  14.16.38 
तत: कदाचिन्निर्वेदान्निराकाराश्रितेन च।
लोकतन्त्रं परित्यक्तं दु:खार्तेन भृशं मया॥ ३८॥
 
 
अनुवाद
एक दिन इन बार-बार के क्लेशों का सामना करने से मैं अत्यन्त दुःखी हो गया और दुःखों से भयभीत होकर मैंने निराकार भगवान् की शरण ली और समस्त सांसारिक कार्यों को त्याग दिया ॥38॥
 
One day, due to facing these repeated troubles, I became very sad and frightened of the sufferings, I took refuge in the formless God and abandoned all worldly affairs. ॥ 38॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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