श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 16: अर्जुनका श्रीकृष्णसे गीताका विषय पूछना और श्रीकृष्णका अर्जुनसे सिद्ध, महर्षि एवं काश्यपका संवाद सुनाना  »  श्लोक 17-18
 
 
श्लोक  14.16.17-18 
ब्राह्मण उवाच
मोक्षधर्मं समाश्रित्य कृष्ण यन्मामपृच्छथा:।
भूतानामनुकम्पार्थं यन्मोहच्छेदनं विभो॥ १७॥
तत् तेऽहं सम्प्रवक्ष्यामि यथावन्मधुसूदन।
शृणुष्वावहितो भूत्वा गदतो मम माधव॥ १८॥
 
 
अनुवाद
ब्राह्मण ने कहा- श्री कृष्ण! मधुसूदन! आपने समस्त प्राणियों पर दया करने तथा उनके मोह का नाश करने के लिए मोक्ष और धर्म से संबंधित यह प्रश्न पूछा है। मैं इसका यथार्थ उत्तर दे रहा हूँ। प्रभु! माधव! मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनिए। 17-18।
 
The Brahmin said- Shri Krishna! Madhusudan! You have asked this question related to salvation and religion in order to show mercy to all beings and to destroy their delusion. I am answering it in its true form. Prabhu! Madhav! Listen to me carefully. 17-18.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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