श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 12: भगवान‍् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको मनपर विजय करनेके लिये आदेश  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  14.12.7 
स त्वं न दु:खी दु:खस्य न सुखी सुसुखस्य च।
स्मर्तुमिच्छसि कौन्तेय किमन्यद् दु:खविभ्रमात् ॥ ७॥
 
 
अनुवाद
कुंतीनंदन! आप न तो दुःखी होकर दुःख को याद करना चाहते हैं और न ही सुखी होकर उत्तम सुख को याद करना चाहते हैं। यह दुःख भ्रम के अतिरिक्त और क्या है?
 
Kunti Nandan! You neither want to remember sorrow while being sad nor do you want to remember the best happiness while being happy. What is this sorrow except confusion? 7.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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