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श्लोक 14.12.15  |
तस्मिन्ननिर्जिते युद्धे कामवस्थां गमिष्यसि।
एतज्ज्ञात्वा तु कौन्तेय कृतकृत्यो भविष्यसि॥ १५॥ |
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अनुवाद |
यदि इस युद्ध में तुम अपने मन को परास्त न कर सको, तो कौन जाने तुम्हारी क्या दशा होगी। हे कुन्तीपुत्र! यदि तुम इस बात को भली-भाँति समझ लोगे, तो तुम्हें संतोष हो जाएगा॥15॥ |
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If you are unable to defeat your mind in this battle, then who knows what will be your condition. O son of Kunti! You will be satisfied if you understand this well. ॥15॥ |
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