श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 110: सर्वहितकारी धर्मका वर्णन, द्वादशी-व्रतका माहात्म्य तथा युधिष्ठिरके द्वारा भगवान‍्की स्तुति  »  श्लोक d35
 
 
श्लोक  14.110.d35 
वैशम्पायन उवाच
एवं वदति देवेशे केशवे पाण्डुनन्दन:।
कृताञ्जलि: स्तोत्रमिदं भक्त्या धर्मात्मजोऽब्रवीत् ॥
 
 
अनुवाद
वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमेजय! भगवान श्रीकृष्ण का इस प्रकार उपदेश सुनकर धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर भक्तिपूर्वक हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगे-॥
 
Vaishampayanji says – Janamejaya! On hearing Lord Krishna's sermon like this, Dharma's son King Yudhishthir started praising him with folded hands with devotion -॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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