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श्री महाभारत
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पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व
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अध्याय 110: सर्वहितकारी धर्मका वर्णन, द्वादशी-व्रतका माहात्म्य तथा युधिष्ठिरके द्वारा भगवान्की स्तुति
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श्लोक d19
श्लोक
14.110.d19
द्वादश्यां फाल्गुने मासि गोविन्दाख्यमुपोष्य माम्।
पूजयेद् य: समाप्नोति ह्यतिरात्रफलं नृप॥
अनुवाद
नरेश्वर! जो मनुष्य फाल्गुन मास की द्वादशी को व्रत करके 'गोविन्द' नाम से मेरी पूजा करता है, उसे अतिरात्रि यज्ञ का फल मिलता है।
Nareshwar! One who worships me in the name of 'Govind' by fasting on Dwadashi in the month of Phalgun, gets the fruit of Atiratri Yagya.
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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