श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 102: कपिला गौका तथा उसके दानका माहात्म्य और कपिला गौके दस भेद  »  श्लोक d42
 
 
श्लोक  14.102.d42 
तैस्तैर्गुणै: कामदुधा च भूत्वा
नरं प्रदातारमुपैति सा गौ:।
स्वकर्मभिश्चाप्यनुबध्यमानं
तीव्रान्धकारे नरके पतन्तम्।
महार्णवे नौरिव वायुनीता
दत्ता हि गौस्तारयते मनुष्यम्॥
 
 
अनुवाद
दान में दी गई गौ अपने विविध गुणों के कारण परलोक में कामधेनु के रूप में दाता के पास पहुँचती है। वह अपने कर्मों से बंधे हुए घोर नरक में गिरते हुए मनुष्य को उसी प्रकार बचा लेती है, जैसे वायु के सहारे चलने वाली नाव समुद्र में डूबते हुए मनुष्य को बचा लेती है।'
 
‘The cow given in charity reaches the donor in the next world in the form of Kamadhenu through its various qualities. It rescues a man who is falling into the darkest hell bound by his deeds, just as a boat moving with the help of wind saves a man from drowning in the ocean.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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