श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 102: कपिला गौका तथा उसके दानका माहात्म्य और कपिला गौके दस भेद  »  श्लोक d24-d26
 
 
श्लोक  14.102.d24-d26 
दश वै कपिला: प्रोक्ता: स्वयमेव स्वयम्भुवा।
प्रथमा स्वर्णकपिला द्वितीया गौरपिङ्गला।
तृतीया रक्तपिङ्गाक्षी चतुर्थी गलपिङ्गला॥
पञ्चमी बभ्रुवर्णाभा षष्ठी च श्वेतपिङ्गला।
सप्तमी रक्तपिङ्गाक्षी त्वष्टमी खुरपिङ्गला॥
नवमी पाटला ज्ञेया दशमी पुच्छपिङ्गला।
दशैता: कपिला: प्रोक्तास्तारयन्ति नरान् सदा॥
 
 
अनुवाद
ब्रह्माजी ने दस प्रकार की कपिला गायों का वर्णन किया है। पहली है स्वर्णकपिला 1, दूसरी है गौरपिंगला 2, तीसरी है अरक्तपिंगाक्षी 3, चौथी है गलपिंगला 4, पांचवीं है बभ्रुवर्णभ 5, छठी है श्वेतपिंगला 6, सातवीं है रक्तपिंगाक्षी 7, आठवीं है खुरपिंगला 8, नौवीं है पाताल 9 और दसवीं है पुच्छपिंगला 10 - ये दस प्रकार की कपिला गायें हैं, जो सदैव मनुष्यों की रक्षा करती हैं।
 
Brahmaji has described ten types of Kapila cows. First is Swarnakapila 1, second is Gaurpingala 2, third is Araktapigakshi 3, fourth is Galpingala 4, fifth is Babhruvarnaabha 5, sixth is Shwetpingala 6, seventh is Raktapigakshi 7, eighth is Khurpingala 8, ninth is Patala 9 and tenth is Puchchhapingala 10 - these are the ten types of Kapila cows, which always save human beings.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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