श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 102: कपिला गौका तथा उसके दानका माहात्म्य और कपिला गौके दस भेद  »  श्लोक d20
 
 
श्लोक  14.102.d20 
कपिलापञ्चगव्येन य: स्नायात् तु शुचिर्नर:।
स गङ्गाद्येषु तीर्थेषु स्नातो भवति पाण्डव॥
 
 
अनुवाद
पाण्डुनन्दन! जो मनुष्य कपिला गौ के पंचगव्य में स्नान करके पवित्र हो जाता है, वह मानो गंगा आदि समस्त तीर्थों में स्नान कर लेता है।
 
Pandunandan! The person who gets purified by bathing in the Panchgavya of Kapila cow, it is as if he has taken bath in all the holy places like Ganga etc.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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