श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 102: कपिला गौका तथा उसके दानका माहात्म्य और कपिला गौके दस भेद  »  श्लोक d2-d3
 
 
श्लोक  14.102.d2-d3 
या चैषा कपिला देव पूर्वमुत्पादिता विभो।
होमधेनु: सदा पुण्या चतुर्वक्त्रेण माधव॥
सा कथं ब्राह्मणेभ्यो हि देया कस्मिन् दिनेऽपि वा।
कीदृशाय च विप्राय दातव्या पुण्यलक्षणा॥
 
 
अनुवाद
हे प्रभु! विभो! जिस कपिला गौ को ब्रह्माजी ने अग्निहोत्र की सिद्धि के लिए प्राचीन काल में उत्पन्न किया था और जो सदा से पवित्र मानी गयी है, उसे ब्राह्मणों को किस प्रकार दान करना चाहिए? माधव! उस पवित्र गुणों वाली गौ को किस दिन और किस प्रकार ब्राह्मण को देना चाहिए?
 
Lord! Vibho! How should that Kapila cow, which was created by Lord Brahma in ancient times for the accomplishment of Agnihotra and which has always been considered sacred, be donated to the Brahmins? Madhav! On which day and how should that cow with sacred traits be given to the Brahmin?
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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