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श्लोक 14.10.30  |
आग्नेयं वै लोहितमालभन्तां
वैश्वदेवं बहुरूपं हि राजन्।
नीलं चोक्षाणं मेध्यमप्यालभन्तां
चलच्छिश्नं सम्प्रदिष्टं द्विजाग्रॺा:॥ ३०॥ |
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अनुवाद |
राजेन्द्र! अग्नि में लाल रंग की वस्तुएं अर्पित की जाएं, विश्वदेवों को विविध रंग की वस्तुएं अर्पित की जाएं, यहां स्पर्श करके दिए गए नीले रंग के चलते हुए लिंग वाले बैल का दान श्रेष्ठ ब्राह्मण स्वीकार करें।' |
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Rajendra! Let red coloured objects be offered for the fire, let various coloured objects be offered to the Vishvadevas, let the best Brahmins accept the donation of a blue coloured bull with a moving penis, given after touching it here.' |
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