श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 10: इन्द्रका गन्धर्वराजको भेजकर मरुत्तको भय दिखाना और संवर्तका मन्त्रबलसे इन्द्रसहित सब देवताओंको बुलाकर मरुत्तका यज्ञ पूर्ण करना  »  श्लोक 3-4
 
 
श्लोक  14.10.3-4 
व्यास उवाच
ततो गत्वा धृतराष्ट्रो नरेन्द्रं
प्रोवाचेदं वचनं वासवस्य॥ ३॥
गन्धर्वं मां धृतराष्ट्रं निबोध
त्वामागतं वक्तुकामं नरेन्द्र।
ऐन्द्रं वाक्यं शृणु मे राजसिंह
यत् प्राह लोकाधिपतिर्महात्मा॥ ४॥
 
 
अनुवाद
व्यास कहते हैं- तब गंधर्वराज धृतराष्ट्र ने राजा मरुत के पास जाकर उनसे इंद्र का संदेश इस प्रकार कहा- 'महाराज! आप जान लीजिए कि मैं धृतराष्ट्र नामक गंधर्व हूँ और देवराज इंद्र का संदेश आपको सुनाने आया हूँ। राजन सिंह! समस्त लोकों के स्वामी महामना इंद्र ने जो कहा है, उसे सुनिए।॥ 3-4॥
 
Vyasa says- Then the Gandharva king Dhritarashtra went to King Marut and told him Indra's message in this way- 'Maharaj! You should know that I am a Gandharva named Dhritarashtra and I have come to convey the message of Devraj Indra to you. King lion! Listen to what Mahamana Indra, the lord of all the worlds, has said.॥ 3-4॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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