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श्लोक 14.10.24  |
इन्द्र उवाच
जानामि ते गुरुमेनं तपोधनं
बृहस्पतेरनुजं तिग्मतेजसम्।
यस्याह्वानादागतोऽहं नरेन्द्र
प्रीतिर्मेऽद्य त्वयि मन्यु: प्रणष्ट:॥ २४॥ |
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अनुवाद |
इन्द्र ने कहा- नरेन्द्र! मैं तुम्हारे इन गुरुदेव को जानता हूँ। ये बृहस्पतिजी के छोटे भाई हैं और तप में धनी हैं। इनका तेज असह्य है। इनके आह्वान पर मुझे यहाँ आना पड़ा। अब मैं तुम पर प्रसन्न हूँ और मेरा सारा क्रोध दूर हो गया है॥ 24॥ |
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Indra said- Narendra! I know this Gurudev of yours. He is the younger brother of Brihaspatiji and is rich in penance. His brilliance is unbearable. I had to come here because of his call. Now I am pleased with you and all my anger has gone away.॥ 24॥ |
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