श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 10: इन्द्रका गन्धर्वराजको भेजकर मरुत्तको भय दिखाना और संवर्तका मन्त्रबलसे इन्द्रसहित सब देवताओंको बुलाकर मरुत्तका यज्ञ पूर्ण करना  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  14.10.19 
संवर्त उवाच
अयमिन्द्रो हरिभिरायाति राजन्
देवै: सर्वैस्त्वरितै: स्तूयमान:।
मन्त्राहूतो यज्ञमिमं मयाद्य
पश्यस्वैनं मन्त्रविस्रस्तकायम्॥ १९॥
 
 
अनुवाद
(तत्पश्चात संवर्त्न ने अपने मन्त्रबल से सम्पूर्ण देवताओं का आवाहन किया और मरुत्त से कहा - राजन्! ये इन्द्र तीव्र गति के घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर आ रहे हैं, जिनकी स्तुति समस्त देवता सुन रहे हैं। मैंने मन्त्रबल से आज इन्हें इस यज्ञ में आवाहन किया है। देखो, मन्त्रबल से इनका शरीर यहाँ खिंचा चला आ रहा है।)
 
(After that, Samvartna invoked all the gods with the power of his mantra and said to Marutta – King! This Indra is coming riding a chariot with fast horses, with all the gods hearing his praise. I have invoked them in this yagya today with the power of mantra. Look, his body is getting pulled here due to the power of mantra. 19॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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