श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 10: इन्द्रका गन्धर्वराजको भेजकर मरुत्तको भय दिखाना और संवर्तका मन्त्रबलसे इन्द्रसहित सब देवताओंको बुलाकर मरुत्तका यज्ञ पूर्ण करना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  14.10.18 
मरुत्त उवाच
इन्द्र: साक्षात् सहसाभ्येतु विप्र
हविर्यज्ञे प्रतिगृह्णातु चैव।
स्वं स्वं धिष्ण्यं चैव जुषन्तु देवा
हुतं सोमं प्रतिगृह्णन्तु चैव॥ १८॥
 
 
अनुवाद
मरुत्त ने कहा, "ब्रह्मर्षि! आपको ऐसा प्रयत्न करना चाहिए कि इन्द्र स्वयं शीघ्र ही मेरे यज्ञ में आकर अपना भाग ग्रहण करें। साथ ही अन्य देवता भी अपने-अपने स्थान पर आकर विराजमान हों तथा सब लोग मिलकर उस आहुति रूपी सोमरस का पान करें।"
 
Marutta said, "Brahmarshi! You should make such efforts that Indra himself comes to my sacrifice quickly and takes his share of the offerings. Along with that, other gods should also come and sit in their respective places and everyone should drink the Somras received as offerings together." 18.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.