श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 10: इन्द्रका गन्धर्वराजको भेजकर मरुत्तको भय दिखाना और संवर्तका मन्त्रबलसे इन्द्रसहित सब देवताओंको बुलाकर मरुत्तका यज्ञ पूर्ण करना  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  14.10.16 
मरुत्त उवाच
घोर: शब्द: श्रूयते वै महास्वनो
वज्रस्यैष सहितो मारुतेन।
आत्मा हि मे प्रव्यथते मुहुर्मुहु-
र्न मे स्वास्थ्यं जायते चाद्य विप्र॥ १६॥
 
 
अनुवाद
मरुत्त बोले, "हे ब्राह्मण! मैं तूफान के साथ-साथ वज्रों की भी भयंकर गर्जना सुन रहा हूँ। इससे मेरा हृदय बार-बार काँप रहा है। आज मेरे मन में बिल्कुल भी शांति नहीं है।"
 
Marutta said, "O Brahmin! Along with the storm, I can hear the loud thunder of thunderbolts. This makes my heart tremble every now and then. Today, I have no peace at all in my mind." 16.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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