श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 10: इन्द्रका गन्धर्वराजको भेजकर मरुत्तको भय दिखाना और संवर्तका मन्त्रबलसे इन्द्रसहित सब देवताओंको बुलाकर मरुत्तका यज्ञ पूर्ण करना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  14.10.15 
वह्निर्देवस्त्रातु वा सर्वतस्ते
कामान् सर्वान् वर्षतु वासवो वा।
वज्रं तथा स्थापयतां वधाय
महाघोरं प्लवमानं जलौघै:॥ १५॥
 
 
अनुवाद
अग्निदेव सब ओर से तुम्हारी रक्षा करें। देवराज इन्द्र तुम पर जल नहीं, अपितु समस्त कामनाओं की वर्षा करें। देवेन्द्र अपने हाथ में भयंकर वज्र धारण करें, जो तुम्हें मारने के लिए उठाया गया है और जल के साथ चंचल गति से चलता है।॥15॥
 
May Agnidev protect you from all sides. May Devraj Indra shower all wishes on you, not water. May Devendra keep the fierce thunderbolt in his hand, which is raised to kill you and moves with the water at a playful pace. ॥ 15॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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