श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 9: ब्राह्मणको देनेकी प्रतिज्ञा करके न देने तथा उसके धनका अपहरण करनेसे दोषकी प्राप्तिके विषयमें सियार और वानरके संवादका उल्लेख एवं ब्राह्मणोंको दान देनेकी महिमा  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  13.9.22 
स एव हि यदा तुष्टो वचसा प्रतिनन्दति।
भवत्यगदसंकाशो विषये तस्य भारत॥ २२॥
 
 
अनुवाद
हे भारत! जब वही ब्राह्मण अपनी आशाओं की पूर्ति से संतुष्ट होकर राजा को अपने वचनों से नमस्कार करता है और आशीर्वाद देता है, तब वह उसके राज्य के लिए वैद्य के समान हो जाता है।
 
Bharat! When the same Brahmin, satisfied with the fulfillment of his hopes, greets the king with his words and blesses him, then he becomes like a physician for his kingdom. 22.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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