श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 86: भीष्मजीका अपने पिता शान्तनुके हाथमें पिण्ड न देकर कुशपर देना, सुवर्णकी उत्पत्ति और उसके दानकी महिमाके सम्बन्धमें वसिष्ठ और परशुरामका संवाद, पार्वतीका देवताओंको शाप, तारकासुरसे डरे हुए देवताओंका ब्रह्माजीकी शरणमें जाना  »  श्लोक 68-69
 
 
श्लोक  13.86.68-69 
तदपत्यं हि युवयोर्देवानभिभवेद् ध्रुवम्।
न हि ते पृथिवी देवी न च द्यौर्न दिवं विभो॥ ६८॥
नेदं धारयितुं शक्ता: समस्ता इति मे मति:।
तेज:प्रभावनिर्दग्धं तस्मात् सर्वमिदं जगत‍्॥ ६९॥
 
 
अनुवाद
आप दोनों का जो पुत्र उत्पन्न होगा, वह निश्चय ही देवताओं को परास्त कर देगा। प्रभु! हमारा विश्वास है कि न तो पृथ्वी, न आकाश, न स्वर्गलोक आपके तेज को सहन कर सकेंगे। ये सब मिलकर भी आपके तेज को सहन नहीं कर सकते। आपके तेज के प्रभाव से यह सम्पूर्ण जगत नष्ट हो जाएगा। 68-69।
 
‘The son that will be born to you both will surely defeat the gods. Prabhu! We believe that neither the earth, nor the sky, nor the heaven will be able to bear your brilliance. Even all of them together are not capable of bearing your brilliance. This entire world will be destroyed by the effect of your brilliance. 68-69.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.