श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 86: भीष्मजीका अपने पिता शान्तनुके हाथमें पिण्ड न देकर कुशपर देना, सुवर्णकी उत्पत्ति और उसके दानकी महिमाके सम्बन्धमें वसिष्ठ और परशुरामका संवाद, पार्वतीका देवताओंको शाप, तारकासुरसे डरे हुए देवताओंका ब्रह्माजीकी शरणमें जाना  »  श्लोक 64-65
 
 
श्लोक  13.86.64-65 
अमोघतेजास्त्वं देव देवी चेयमुमा तथा॥ ६४॥
अपत्यं युवयोर्देव बलवद् भविता विभो।
तन्नूनं त्रिषु लोकेषु न किञ्चिच्छेषयिष्यति॥ ६५॥
 
 
अनुवाद
हे प्रभु! आपकी महिमा अमोघ है। ये देवी उमा भी उतनी ही अमोघ और तेजस्वी हैं। आप दोनों से उत्पन्न संतान अत्यंत शक्तिशाली होगी। निश्चय ही वह तीनों लोकों में किसी को भी जीवित नहीं रहने देगी।
 
God! Prabhu! Your glory is infallible. This goddess Uma is also equally infallible and radiant. The child born to you both will be extremely powerful. Certainly, she will not let anyone survive in the three worlds.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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