श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 86: भीष्मजीका अपने पिता शान्तनुके हाथमें पिण्ड न देकर कुशपर देना, सुवर्णकी उत्पत्ति और उसके दानकी महिमाके सम्बन्धमें वसिष्ठ और परशुरामका संवाद, पार्वतीका देवताओंको शाप, तारकासुरसे डरे हुए देवताओंका ब्रह्माजीकी शरणमें जाना  »  श्लोक 60-61
 
 
श्लोक  13.86.60-61 
शूलपाणेर्भगवतो रुद्रस्य च महात्मन:।
गिरौ हिमवति श्रेष्ठे तदा भृगुकुलोद्वह॥ ६०॥
देव्या विवाहे निर्वृत्ते रुद्राण्या भृगुनन्दन।
समागमे भगवतो देव्या सह महात्मन:॥ ६१॥
 
 
अनुवाद
‘भृगुकुलरत्न! भृगुनन्दन परशुराम! यह घटना उस समय घटित हुई, जब महान पर्वत हिमालय पर शूलपाणि महात्मा भगवान रुद्र का देवी रुद्राणी के साथ विवाहोत्सव सम्पन्न हुआ और महाबली भगवान शिव को उमादेवी के साथ मिलन का आनन्द प्राप्त हुआ ॥60-61॥
 
‘Bhrigukulratna! Bhrigunandan Parshuram! This incident happened at that time, when the marriage ceremony of Shulpani Mahatma Lord Rudra with Goddess Rudrani was completed on the great mountain Himalayas and the great Lord Shiva had the pleasure of meeting with Umadevi. 60-61॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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