श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 86: भीष्मजीका अपने पिता शान्तनुके हाथमें पिण्ड न देकर कुशपर देना, सुवर्णकी उत्पत्ति और उसके दानकी महिमाके सम्बन्धमें वसिष्ठ और परशुरामका संवाद, पार्वतीका देवताओंको शाप, तारकासुरसे डरे हुए देवताओंका ब्रह्माजीकी शरणमें जाना  »  श्लोक 47-48
 
 
श्लोक  13.86.47-48 
कुञ्जराश्च मृगा नागा महिषाश्चासुरा इति॥ ४७॥
कुक्कुटाश्च वराहाश्च राक्षसा भृगुनन्दन।
इडा गाव: पय: सोमो भूमिरित्येव च स्मृति:॥ ४८॥
 
 
अनुवाद
भृगु नन्दन! हाथी और मृग सर्पों के अंश हैं। भैंसे राक्षसों के अंश हैं। मुर्गे और सूअर राक्षसों के अंश हैं। इड़ा-गाय, दूध और सोम-ये सब पृथ्वी के रूप हैं। ऐसी स्मृति है ॥47-48॥
 
‘Bhrigu Nandan! Elephants and deer are parts of serpents. Buffaloes are parts of demons. Chickens and pigs are parts of demons. Ida-cow, milk and Som-all these are forms of earth. Such is the memory. ॥ 47-48॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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