श्री महाभारत » पर्व 13: अनुशासन पर्व » अध्याय 86: भीष्मजीका अपने पिता शान्तनुके हाथमें पिण्ड न देकर कुशपर देना, सुवर्णकी उत्पत्ति और उसके दानकी महिमाके सम्बन्धमें वसिष्ठ और परशुरामका संवाद, पार्वतीका देवताओंको शाप, तारकासुरसे डरे हुए देवताओंका ब्रह्माजीकी शरणमें जाना » श्लोक 34-36 |
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| | श्लोक 13.86.34-36  | स तु क्रतुवरेणेष्ट्वा महात्मा दक्षिणावता॥ ३४॥
पप्रच्छागमसम्पन्नानृषीन् देवांश्च भार्गव:।
पावनं यत् परं नॄणामुग्रे कर्मणि वर्तताम्॥ ३५॥
तदुच्यतां महाभागा इति जातघृणोऽब्रवीत्।
इत्युक्ता वेदशास्त्रज्ञास्तमूचुस्ते महर्षय:॥ ३६॥ | | | अनुवाद | प्रचुर दक्षिणा सहित उस महान यज्ञ का अनुष्ठान पूर्ण करके महामना भृगुवंशी परशुराम जी ने हृदय में करुणा करके विद्वानों, ऋषियों और देवताओं से इस प्रकार पूछा - ‘महाभाग महात्माओं! हिंसा कर्म में लगे हुए मनुष्यों के लिए परम पवित्र वस्तु क्या है, यह मुझे बताइए।’ उनके इस प्रकार पूछने पर वेद-शास्त्रों को जानने वाले उन महर्षियों ने इस प्रकार कहा - ॥34-36॥ | | After completing the rituals of that great Yagya with abundant Dakshina, Mahamana Bhriguvanshi Parshuram ji, with compassion in his heart, asked the scholars, sages and gods in this way - 'Mahabhag Mahatmas! Tell me what is the most sacred thing for people engaged in violent activities.' On his asking like this, those great sages who knew the Vedas and scriptures said thus - ॥ 34-36॥ |
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