श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 80: वसिष्ठका सौदासको गोदानकी विधि एवं महिमा बताना  »  श्लोक 14-15
 
 
श्लोक  13.80.14-15 
युवानमिन्द्रियोपेतं शतेन शतयूथपम्।
गवेन्द्रं ब्राह्मणेन्द्राय भूरिशृंगमलङ्कृतम्॥ १४॥
वृषभं ये प्रयच्छन्ति श्रोत्रियाय परंतप।
ऐश्वर्यं तेऽधिगच्छन्ति जायमाना: पुन: पुन:॥ १५॥
 
 
अनुवाद
हे शत्रुओं को पीड़ा देने वाले राजन! जो मनुष्य समस्त इन्द्रियों से युक्त, सौ गौओं के पालक, बड़े सींगों वाले एक युवा बैल को सुशोभित करके उसे सौ गौओं सहित श्रोत्रिय ब्राह्मण को दान करते हैं, वे इस संसार में जन्म लेते ही महान् ऐश्वर्य के भागी होते हैं॥ 14-15॥
 
O King who torments his enemies! Those who decorate a young bull with all the senses, the herder of a hundred cows, and have large horns and donate it along with a hundred cows to a Shrotri Brahmin, they become part of great prosperity every time they are born in this world.॥ 14-15॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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