श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 74: गौओंके लोक और गोदानविषयक युधिष्ठिर और इन्द्रके प्रश्न  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  13.74.6 
शक्र उवाच
स्वर्लोकवासिनां लक्ष्मीमभिभूय स्वयार्चिषा।
गोलोकवासिन: पश्ये व्रजत: संशयोऽत्र मे॥ ६॥
 
 
अनुवाद
इन्द्र ने पूछा - हे प्रभु! मैं देखता हूँ कि गोलोकवासी लोग अपने तेज से लोकों की कान्ति को क्षीण करते हुए स्वर्गलोक को पार कर जाते हैं; इसलिए मेरे मन में यह संदेह उत्पन्न होता है॥6॥
 
Indra asked - O Lord! I see that the people residing in Goloka cross over the heavenly places, dimming the radiance of the people with their brilliance; hence this doubt arises in my mind.॥ 6॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.