श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 57: च्यवनका कुशिकके पूछनेपर उनके घरमें अपने निवासका कारण बताना और उन्हें वरदान देना  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  13.57.9 
न चैवात्राधिगच्छामि सर्वस्यास्य विनिश्चयम्।
एतदिच्छामि कात्‍स्‍न्‍‍‍र्येन सत्यं श्रोतुं तपोधन॥ ९॥
 
 
अनुवाद
हे तपधान! इन सब विषयों पर विचार करने पर भी मैं किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पा रहा हूँ, इसलिए मैं इन विषयों को पूर्णतः तथा यथार्थ रूप में सुनना चाहता हूँ॥9॥
 
O Tapadhan! Even after thinking over all these matters I am unable to arrive at any decision, therefore I wish to hear these matters in their complete and true form.॥ 9॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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