श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 57: च्यवनका कुशिकके पूछनेपर उनके घरमें अपने निवासका कारण बताना और उन्हें वरदान देना  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  13.57.37 
कथमेष्यति विप्रत्वं कुलं मे भृगुनन्दन।
कश्चासौ भविता बन्धुर्मम कश्चापि सम्मत:॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
भृगु नन्दन! मेरा कुल ब्राह्मणत्व कैसे प्राप्त करेगा? वह मेरा भाई, वह पूज्य पौत्र कौन होगा, जो सबसे पहले ब्राह्मण बनेगा?॥37॥
 
Bhrigu Nandan! How will my clan attain brahminhood? Who will be that brother of mine, that respected grandson, who will be the first to become a brahmin?॥ 37॥
 
इति श्रीमहाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि च्यवनकुशिकसंवादो नाम पञ्चपञ्चाशत्तमोऽध्याय:॥ ५५॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्वके अन्तर्गत दानधर्मपर्वमें च्यवन और कुशिकका संवादविषयक पचपनवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ५५॥

 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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