श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 57: च्यवनका कुशिकके पूछनेपर उनके घरमें अपने निवासका कारण बताना और उन्हें वरदान देना  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  13.57.36 
ब्राह्मण्यं मे कुलस्यास्तु भगवन्नेष मे वर:।
पुनश्चाख्यातुमिच्छामि भगवन् विस्तरेण वै॥ ३६॥
 
 
अनुवाद
हे प्रभु! मेरा कुल ब्राह्मणों से परिपूर्ण हो, यही मेरा अभीष्ट वर है। हे प्रभु! मैं इस विषय को पुनः विस्तारपूर्वक सुनना चाहता हूँ ॥36॥
 
O Lord! May my clan be filled with Brahmins, this is my desired boon. O Lord! I wish to hear this topic again in detail. ॥ 36॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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