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श्लोक 13.57.36  |
ब्राह्मण्यं मे कुलस्यास्तु भगवन्नेष मे वर:।
पुनश्चाख्यातुमिच्छामि भगवन् विस्तरेण वै॥ ३६॥ |
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अनुवाद |
हे प्रभु! मेरा कुल ब्राह्मणों से परिपूर्ण हो, यही मेरा अभीष्ट वर है। हे प्रभु! मैं इस विषय को पुनः विस्तारपूर्वक सुनना चाहता हूँ ॥36॥ |
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O Lord! May my clan be filled with Brahmins, this is my desired boon. O Lord! I wish to hear this topic again in detail. ॥ 36॥ |
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