श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 57: च्यवनका कुशिकके पूछनेपर उनके घरमें अपने निवासका कारण बताना और उन्हें वरदान देना  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  13.57.35 
कुशिक उवाच
एष एव वरो मेऽद्य यस्त्वं प्रीतो महामुने।
भवत्वेतद् यथाऽऽत्थ त्वं भवेत् पौत्रो ममानघ॥ ३५॥
 
 
अनुवाद
कुशिक ने कहा- महामुनि! आज आप प्रसन्न हैं, यह मेरे लिए बहुत बड़ा वरदान है। अनघ! आप जो कह रहे हैं, वह सत्य हो - मेरा पौत्र ब्राह्मण हो।
 
Kushika said- Mahamuni! You are happy today, this is a great boon for me. Anagh! May what you are saying come true- may my grandson become a Brahmin.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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