श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 57: च्यवनका कुशिकके पूछनेपर उनके घरमें अपने निवासका कारण बताना और उन्हें वरदान देना  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  13.57.32 
वंशस्ते पार्थिवश्रेष्ठ भृगूणामेव तेजसा।
पौत्रस्ते भविता विप्रस्तपस्वी पावकद्युति:॥ ३२॥
 
 
अनुवाद
श्रेष्ठ! भृगुवंश के प्रताप से ही तुम्हारा वंश ब्राह्मणत्व को प्राप्त होगा। तुम्हारा पौत्र अग्नि के समान तेजस्वी और तपस्वी ब्राह्मण होगा। 32॥
 
The best! It is only through the glory of Bhriguvanshi that your lineage will attain Brahmin status. Your grandson will be as bright as fire and an ascetic Brahmin. 32॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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