श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 57: च्यवनका कुशिकके पूछनेपर उनके घरमें अपने निवासका कारण बताना और उन्हें वरदान देना  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  13.57.22 
भोजनं च समानाय्य यत् तदा दीपितं मया।
क्रुद्धॺेथा यदि मात्सर्यादिति तन्मर्षितं च मे॥ २२॥
 
 
अनुवाद
इसके बाद जब मैंने भोजन मँगवाया और उसे जला दिया, तो उसके पीछे छिपा हुआ उद्देश्य यह था कि तुम ईर्ष्यावश मुझ पर क्रोधित हो जाओगी; परन्तु तुमने मेरे उस व्यवहार को भी सहन कर लिया॥ 22॥
 
After this, when I ordered food and burnt it, the hidden motive behind it was that you would get angry with me out of jealousy; but you tolerated that behaviour of mine as well.॥ 22॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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