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श्लोक 13.57.21  |
न च तेऽभूत् सुसूक्ष्मोऽपि मन्युर्मनसि पार्थिव।
सभार्यस्य नरश्रेष्ठ तेन ते प्रीतिमानहम्॥ २१॥ |
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अनुवाद |
हे राजन! पुरुषोत्तम! इतना सब होने पर भी आपने और आपकी पत्नियों ने तनिक भी क्रोध नहीं किया। इससे मैं आपसे बहुत संतुष्ट हूँ।॥21॥ |
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O king! Best of men! Despite all this, you and your wives did not show any anger at all. This made me very satisfied with you. ॥ 21॥ |
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