श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 57: च्यवनका कुशिकके पूछनेपर उनके घरमें अपने निवासका कारण बताना और उन्हें वरदान देना  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  13.57.21 
न च तेऽभूत् सुसूक्ष्मोऽपि मन्युर्मनसि पार्थिव।
सभार्यस्य नरश्रेष्ठ तेन ते प्रीतिमानहम्॥ २१॥
 
 
अनुवाद
हे राजन! पुरुषोत्तम! इतना सब होने पर भी आपने और आपकी पत्नियों ने तनिक भी क्रोध नहीं किया। इससे मैं आपसे बहुत संतुष्ट हूँ।॥21॥
 
O king! Best of men! Despite all this, you and your wives did not show any anger at all. This made me very satisfied with you. ॥ 21॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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