श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 57: च्यवनका कुशिकके पूछनेपर उनके घरमें अपने निवासका कारण बताना और उन्हें वरदान देना  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  13.57.2 
कुशिक उवाच
यदि प्रीतोऽसि भगवंस्ततो मे वद भार्गव।
कारणं श्रोतुमिच्छामि मद्‍गृहे वासकारितम्॥ २॥
 
 
अनुवाद
कुशिक बोले- हे प्रभु! हे भृगुपुत्र! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो मुझे बताइए कि आप इतने दिनों तक मेरे घर पर क्यों रहे? मैं इसका कारण सुनना चाहता हूँ॥ 2॥
 
Kushika said- O Lord! O son of Bhrigu! If you are pleased with me, then tell me why did you stay at my house for so many days? I want to hear the reason for this.॥ 2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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