श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 57: च्यवनका कुशिकके पूछनेपर उनके घरमें अपने निवासका कारण बताना और उन्हें वरदान देना  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  13.57.16 
एवं बुद्धिं समास्थाय दिवसानेकविंशतिम्।
सुप्तोऽस्मि यदि मां कश्चिद् बोधयेदिति पार्थिव॥ १६॥
 
 
अनुवाद
ऐसा विचार करके मैं इक्कीस दिन तक एक करवट सोता रहा, इस आशा से कि कोई मुझे जगा देगा॥16॥
 
With this thought in mind, I slept on one side for twenty-one days, hoping that someone would wake me up.॥ 16॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.