श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 57: च्यवनका कुशिकके पूछनेपर उनके घरमें अपने निवासका कारण बताना और उन्हें वरदान देना  »  श्लोक 14-15
 
 
श्लोक  13.57.14-15 
ततोऽहमागम्य पुरे त्वामवोचं महीपते।
नियमं कंचिदारप्स्ये शुश्रूषा क्रियतामिति॥ १४॥
न च ते दुष्कृतं किंचिदहमासादयं गृहे।
तेन जीवसि राजर्षे न भवेथास्त्वमन्यथा॥ १५॥
 
 
अनुवाद
राजन! इसी उद्देश्य से मैं आपके नगर में आया था और आपसे कहा था कि मैं व्रत आरम्भ करूँगा। आप मेरी सेवा करें (इसी उद्देश्य से मैं आपके दोष खोज रहा था); किन्तु आपके घर में रहकर भी आज तक मुझे आपमें कोई दोष नहीं मिला। हे राजन! इसी कारण आप जीवित हैं, अन्यथा आपकी शक्ति नष्ट हो जाती। 14-15.
 
King! With this objective, I came to your city and told you that I will start a fast. You serve me (with this intention I was searching for your faults); but even after staying in your house, I have not found any fault in you till date. O King! That is why you are alive, otherwise your power would have been destroyed. 14-15.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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