श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 57: च्यवनका कुशिकके पूछनेपर उनके घरमें अपने निवासका कारण बताना और उन्हें वरदान देना  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  13.57.12 
ब्रह्मक्षत्रविरोधेन भविता कुलसंकर:।
पौत्रस्ते भविता राजंस्तेजोवीर्यसमन्वित:॥ १२॥
 
 
अनुवाद
हे मनुष्यों! ब्रह्माजी ने कहा था कि ब्राह्मण और क्षत्रियों में संघर्ष होने से दोनों कुलों में संकरण होगा। (मैंने उनसे यह भी सुना था कि आपके कुल की कन्या मेरे कुल में क्षत्रिय यश फैलाएगी और) आपका एक पौत्र ब्राह्मण यश से युक्त और पराक्रमी होगा।॥12॥
 
O Lord of men! Brahmaji had said that due to the conflict between Brahmins and Kshatriyas, there will be a hybridization between the two clans. (I had also heard from him that the daughter of your clan will spread Kshatriya glory in my clan and) one of your grandsons will be endowed with Brahmin glory and will be valiant.॥12॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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