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श्लोक 13.51.2  |
विप्रवादा: सुबहव: श्रूयन्ते पुत्रकारिता:।
अत्र नो मुह्यतां राजन् संशयं छेत्तुमर्हसि॥ २॥ |
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अनुवाद |
पुत्र-जन्म के विषय में अनेक प्रकार की बातें सुनी जाती हैं। हे राजन! हम इस विषय में असमंजस में हैं और किसी भी बात का निश्चय नहीं कर पा रहे हैं; अतः आप हमारी इस शंका का निवारण कीजिए॥ 2॥ |
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Many different things are heard about the birth of a son. O King! We are confused about this matter and are unable to decide anything; therefore, please remove this doubt of ours.॥ 2॥ |
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