श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 51: नाना प्रकारके पुत्रोंका वर्णन  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  13.51.17 
अन्यत्र क्षेत्रज: पुत्रो लक्ष्यते भरतर्षभ।
न ह्यात्मा शक्यते हन्तुं दृष्टान्तोपगतो ह्यसौ॥ १७॥
 
 
अनुवाद
हे भरतश्रेष्ठ! दूसरे देश में उत्पन्न पुत्र अनेक लक्षणों से पहचाना जा सकता है कि वह किसका पुत्र है। उसकी वास्तविकता कोई छिपा नहीं सकता; वह स्वतः ही प्रकट हो जाती है॥ 17॥
 
O best of the Bharatas! A son born in another's land can be identified by various characteristics as to whose son he is. No one can hide his reality; it becomes apparent automatically.॥ 17॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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