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श्लोक 13.51.16  |
पुत्रकामो हि पुत्रार्थे यां वृणीते विशाम्पते।
क्षेत्रजं तु प्रमाणं स्यान्न वै तत्रात्मज: सुत:॥ १६॥ |
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अनुवाद |
प्रजानाथ! यदि पुत्र की इच्छा रखने वाला पुरुष पुत्र प्राप्ति के लिए गर्भवती कन्या को पत्नी के रूप में स्वीकार करता है, तो उसका क्षेत्रज पुत्र उस पति का माना जाता है, जिसने उससे विवाह किया है। गर्भ धारण करने वाले का उस पर कोई अधिकार नहीं होता॥16॥ |
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Prajanath! If a man who desires a son accepts a pregnant girl as his wife for the sake of having a son, then his Kshetraj son is considered to be of the husband who is marrying her. The one who conceived the child has no right over it.॥ 16॥ |
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