श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 50: वर्णसंकर संतानोंकी उत्पत्तिका विस्तारसे वर्णन  »  श्लोक 34-35
 
 
श्लोक  13.50.34-35 
गोब्राह्मणाय साहाय्यं कुर्वाणा वै न संशय:।
आनृशंस्यमनुक्रोश: सत्यवाक्यं तथा क्षमा॥ ३४॥
स्वशरीरैरपि त्राणं बाह्यानां सिद्धिकारणम्।
भवन्ति मनुजव्याघ्र तत्र मे नास्ति संशय:॥ ३५॥
 
 
अनुवाद
हे नरसिंह! यदि ये गौओं और ब्राह्मणों की सहायता करें, क्रूर कर्म त्याग दें, सब पर दया करें, सत्य बोलें, दूसरों के पापों को क्षमा करें और अपने शरीर को कष्ट देकर भी दूसरों की रक्षा करें, तो ये वर्णसंकर पुरुष भी आध्यात्मिक उन्नति कर सकते हैं - इसमें संशय नहीं है॥34-35॥
 
O lion of men! If they help cows and brahmins, give up cruel acts, show mercy to all, speak the truth, forgive the sins of others and protect others even by putting their own bodies in pain, then these mixed caste men can also make spiritual progress - there is no doubt about this. ॥ 34-35॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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