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श्लोक 13.5.32  |
एवमेव मनुष्येन्द्र भक्तिमन्तं समाश्रित:।
सर्वार्थसिद्धिं लभते शुकं प्राप्य यथा द्रुम:॥ ३२॥ |
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अनुवाद |
नरेन्द्र! जिस प्रकार उस वृक्ष ने भक्त तोते का साथ पाकर अपनी समस्त कामनाओं की पूर्ति प्राप्त कर ली, उसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य भी अपने प्रति भक्ति रखने वाले पुरुष का साथ पाकर अपनी समस्त कामनाओं की पूर्ति प्राप्त कर सकता है ॥ 32॥ |
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Narendra! Just as that tree achieved the fulfillment of all its desires by getting the company of the devotee parrot, similarly every human being can achieve the fulfillment of all his desires by getting the support of a person who has devotion towards him. ॥ 32॥ |
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इति श्रीमहाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि शुकवासवसंवादे पञ्चमोऽध्याय:॥ ५॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्वके अन्तर्गतदानधर्मपर्वमें शुक और इन्द्रका संवादविषयक पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ५ ॥
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