श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 5: स्वामिभक्त एवं दयालु पुरुषकी श्रेष्ठता बतानेके लिये इन्द्र और तोतेके संवादका उल्लेख  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  13.5.22 
अस्मिन्नहं द्रुमे जात: साधुभिश्च गुणैर्युत:।
बालभावेन संगुप्त: शत्रुभिश्च न धर्षित:॥ २२॥
 
 
अनुवाद
‘मैं इस वृक्ष पर उत्पन्न हुआ हूँ और यहीं रहकर मैंने उत्तम गुणों की शिक्षा ली है। इस वृक्ष ने अपनी सन्तान के समान मेरी रक्षा की और शत्रुओं को मुझ पर आक्रमण नहीं करने दिया।’॥22॥
 
‘I was born on this tree and have learnt good qualities by living here. This tree protected me like its own child and did not let the enemies attack me.’॥22॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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